सरकार ने अपनी नीतियों की विफलता छुपाने के लिए नोटबंदी (demonetisation) में सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले बैंकर्स को ही इसकी इसकी विफलता के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया था,जबकि सच्चाई यह है, की बैंकर्स के लिए नोटबंदी किसी भयंकर सपने से कम नहीं है. नोटबंदी(demonetisation) के दौरान बैंकर्स का ऑफिस ही घर बन गया था. नार्मल दिनों में 9 घंटे काम करने वाले बैंकर्स ने 18-18 घंटे काम किया, इस दौरान पब्लिक द्वारा बैंक कर्मियों को पीटने की भी खबरें आयीं। मालेगाव की एक बैंक को पब्लिक ने 12 घंटे तक बैंक कर्मियों को बंधक बना कर रखा था, पब्लिक द्वारा बैंक कर्मियों से अभद्रता करना तो साधारण सी बात हो गई थी. इस दौरान कई बैंक कर्मियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, यहाँ तक की कई बैंक कर्मियों की ड्यूटी के दौरान ही मौत भी हो गई. ऐसी ही एक घटना नागपुर में हुई, जिसमे एक बैंक कर्मी की काम के दौरान ही दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. हरियाणा में भी कोऑपरेटिव बैंक के मैनेजर राजेश की मौत बैंक में ही हो गई थी, वो अपनी मौत से पहले 3 दिन से अपने घर नहीं गए थे.
हाल ही में कार्यवाहक वित्त मंत्री रहे, पियूष गोयल ने नोटबंदी (demonetisation) की विफलता का ठीकरा बैंक कर्मियों के सर फोड़ा था. उनके मुताबिक बैंकर्स की खराब भूमिका की वजह से नोटबंदी (demonetisation) फेल हुई थी. नोटबंदी (demonetisation) के प्रबल समर्थक रहें बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी हवा के रुख भांपते हुए, हाल में नोटबंदी पर अपने स्टैंड को बदलते हुए, इसकी विफलता के लिए बैंक कर्मियों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया था, जिसके बाद उनकी तीखी आलोचना भी हुईं थी।
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