सरकार के बैंको के विलय की नीति तात्कालिक स्तर पर कुछ राहत जरूर दे सकती है. लेकिन लम्बे समय में सरकार की यह नीति कारगर साबित होती नही दिख रही है. वर्तमान समय मे नए डिपॉजिट का 70% प्राइवेट बैंको के पास है. नए लोन का भी80% हिस्सा आज प्राइवेट बैंको के पास ही है. जबकि नेटवर्क के मामले में प्राइवेट बैंक सरकारी बैंकों से बहुत पीछे हैं. फिर आखिर क्यों सरकारी बैंक प्राइवेट बैंको से इतना पिछड़ रहें हैं??
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